Thursday, September 18, 2008

मैं रहूँ या न रहूँ

हम सोचते रहे की थोडी कोशिश तो करनी पड़ती ही है ज़िन्दगी में,
फिर बचा कूचा हुआ तुम कर देते हो|
और इसी वहम मैं हम कल तक कोशिश करते रहे, और उनका इंतज़ार किया|
हाँ! वोह आए तो ज़रूर और काम भी हो गया पर यह हलकी सी थकन कैसी?
अरे हाँ! हमने कोशिश जो की थी॥

आज वोह कोशिश न जाने कैसे छूट गई|
वैसे छोडी नहीं - करने को कोशिश तो है पर तुमने मौका ही नही दिया|
बस काम होता गया और हम चौंकते रहे - "अरे यह कैसे हो गया? मैंने तो अभी कुछ किया ही नहीं!"

लेकिन जो भी हुआ इतना सुंदर और पूर्ण था|
हम कोहिश क्या - अगर दिन तोड़ मेहनत भी करते तो भी ऐसा ना हो पाता|
यह कैसी तेरी माया है!
कुछ करने भी नहीं देते हो और काम हो जाता है|
यहाँ हाथ उठाया नहीं गिलास तक और प्यास भुझ गई|
निवाला गले में उतरा नहीं और भूख ना रही|
यह कैसी तेरी माया है|

कोई हमसे कहते है "पर तुम माद्यम तो थे?"
पर मैं कहूं - "कैसा माद्यम भाई?"
माद्यम भी तो कुछ करता है|
यह तो जैसे बिन बुलाये बरात में आए,
शादी देखि, खाना खाया और "वाह! वाह!" भी सुनी,
और जाते जाते लोग शुक्रिया भी अदा कर गए|

कैसा माद्यम और कैसी मेहनत!
यह भी मेरा ही अंहकार है जो अपना अस्तित्व खोज रहा है|
'मैं हूँ ना" - वोह एहसास खोज रहा है|
यह भी मात्र एक वहम हैं|
मैं रहूँ या रहूँ -
शादी भी होगी, बरात भी आएगी,
दूल्हा भी सजेगा और डोली भी उठेगी|
मैं रहूँ या न रहूँ|
मैं रहूँ या रहूँ|
मैं रहूँ या रहूँ|

No comments: