Monday, September 15, 2008

Waqt Ki Maat!

वक्त की मात से कौन बचा है
ना हम, ना तुम और ना यह गम|

लगता है वक्त कभी ना बदलेगा,
पर देखूं तो हर दिन नयी सुबह हैं|
लगता हैं ज़िन्दगी में गम ही गम है,
पर कल जब तुमने हस्साया थो आँख भर आई |
वक्त की मात से कौन बचा है,
ना हम, ना तुम और ना यह गम|

यह घने बादलों का मैं क्या करू?
यह बरसते हैं थो फिसला देते हैं,
ना बरसते हैं थो इंतज़ार करवाते है|
बड़ा ही बेईचैन मन हैं,
जो पाकर भी खाली हाथ हैं,
और न मिले थो बड़ी शिकायत है|
वक्त की मात से कौन बचा है,
ना हम, ना तुम और ना यह|

जब तुम मिले तो लगा दुनिया मिल गई,
आज तुम्हारे अलविदा ने दिल को जला|
यह बदलते मौसम का में क्या करुँ,
वक्त की मात से कौन बचा है,
ना हम ना तुम और ना यह|

जो थमा नहीं, न चला कहीं
बस हैं यहीं यहीं,
वक्त की मात से कौन बचा है,
ना हम ना तुम और ना यह|

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