Tuesday, September 16, 2008

तुम्हे पाने की चाह - more poems from my collection

तुम्हें पाकर भी पाया नहीं,
तुम्हें पाकर भी खो दिया,
तुम्हें खो कर भी खोया नहीं,
तुम्हे खो कर भी पा लिया!


यह कैसी माया हैं!
कैसा खोना, कैसा पाना!
जो मैं हूँ उसे क्या खोजना, कहाँ खोजना!
जिससे में हूँ बना, उसे क्या पाना!
कैसे पाना!
मैं बस हूँ - यहाँ, वहां, और वहां!

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